व्यापक रूप से धर्म और विशेष रूप से राम मंदिर पर कांग्रेस का धर्म संकट चिरंतन है. अयोध्या के मुद्दे पर पार्टी हमेशा दुविधा मतलब कनफ्यूजन में रही है. देश के पहले पीएम पंडित जवाहरलाल नेहरू से लेकर राजीव गांधी और राहुल गांधी तक कांग्रेस का ये कनफ्यूजन कम नहीं हुआ. कांग्रेस की इसी दुविधा से बीजेपी को हमेशा फायदा हुआ है. बीजेपी के पास जब लोकसभा की सिर्फ दो सीटें थीं तब राजीव गांधी ने अयोध्या में ताला खुलवाया था. शाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलटने के बाद हिंदुओं को खुश करने के लिए उन्होंने ऐसा किया था. तब माया मिली न राम. अब कांग्रेस फिर उसी दुविधा में है. राहुल गांधी इन दिनों भारत न्याय यात्रा पर हैं.
ठीक उसी समय यूपी में कांग्रेस के नेता राम यात्रा पर हैं. पार्टी के यूपी प्रभारी अविनाश पांडे और प्रदेश अध्यक्ष अजय राय के नेतृत्व में कांग्रेस के लोग अयोध्या पहुंचे. दोनों नेताओं ने सरयू में डुबकी लगाई. सब हनुमान गढ़ी गए और फिर रामलला के दर्शन किए. ये सब तब हुआ जब कांग्रेस के सीनियर नेताओं ने प्रभु राम के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम का निमंत्रण ठुकरा दिया है. अजय राय कहते हैं कोई कनफ्यूजन नहीं है. राम सबके हैं. हमें बीजेपी के कार्यक्रम में जाना मंजूर नहीं है. इसीलिए हम पहले ही रामलला के दर्शन करने आ गए हैं.
फैसला लेने में लगा दिए 25 दिन
सोनिया गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और लोकसभा में पार्टी के नेता अधीर रंजन चौधरी को 22 जनवरी का न्योता मिला था. श्री राम जन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के लोगों ने इन नेताओं से मिल कर उन्हें आमंत्रित किया था. रामलला के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में जाना है या नहीं ! ये फैसला करने में कांग्रेस ने पच्चीस दिन लगा दिए. लेफ्ट नेता सीताराम येचुरी और समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने दो दिनों में ही ये फैसला कर लिया. सच तो ये है कि कांग्रेस पार्टी दो नावों में सवारी करना चाहती है. उसे मुसलमानों का वोट चाहिए और हिंदुओं का भी. कहते हैं गलतियों से लोग सबक सीखते हैं. पर कांग्रेस अपवाद है. ऐसा लगता है कि उसने गलतियां बार बार करने का मन बना लिया है. यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य कहते हैं कांग्रेस वाले चुनावी भक्त हैं. उन्हें चुनाव में ही भगवान याद आते हैं. भगवान भी अब उनको समझ गए हैं. अगर उनकी सरकार में सोमनाथ का मंदिर बन सकता था तो काशी में विश्वनाथ कॉरिडोर और अयोध्या में राम मंदिर भी बन सकता था.
राजनैतिक और वैचारिक रूप से स्पष्टता न हो तो फैसले लेने में देरी होती है. कांग्रेस के साथ यही हो रहा है. प्राण प्रतिष्ठा समारोह के बॉयकॉट का आधार शंकराचार्य के बयान को बनाया गया. अब शंकराचार्य कह रहे हैं राम मंदिर से हमारा कोई विरोध नहीं है. कांग्रेस का आरोप है कि प्राण प्रतिष्ठा धर्म सम्मत नहीं हो रहा. ये राजनैतिक प्रोजेक्ट है. अब अगर कांग्रेस इसे राजनैतिक कार्यक्रम मानती है तो फिर इसमें धर्मसम्मत चीजें क्यों खोज रही है.
कांग्रेस में खुद विरोध के स्वर
पार्टी के भीतर भी फैसले के खिलाफ आवाज तेज हो रही है. हिमाचल के मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने कहा है कि पिता की इच्छा पूरी करने वे अयोध्या जायेंगें. गुजरात के प्रदेश अध्यक्ष रहे अर्जुन मोडवाडिया कहते हैं पार्टी को ऐसे राजनैतिक फैसलों से बचना चाहिए था. बीजेपी और पीएम नरेन्द्र मोदी के जाल में फंस कर राहुल गांधी कभी जनेऊधारी ब्राह्मण बन जाते हैं. कभी वे शिव भक्त बन जाते हैं.
अयोध्या को लेकर दुविधा में कांग्रेस सुविधा की राजनीति ढूंढ रही है. सबरीमाला में महिलाओं के प्रवेश के मुद्दे पर कांग्रेस सुप्रीम कोर्ट के फैसले के साथ खड़ी हो जाती है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले पर बने राम मंदिर के राजनैतिक इवेंट बता कर विरोध पर आ जाती है. ये सुविधा की राजनीति है. जिसे अंग्रेज़ी में हिपोक्रेसी कहते हैं.